Saturday, July 24, 2010

क्या होगा पुतला जलाने भर से

आपको याद है कि कोई कसाव भी है भारत सरकार जिसकी सुरक्षा पर करोड़ों लुटा चुकी है और देश  के किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति से उसकी सुरक्षा की चिन्ता सरकार को अधिक है जिसकी अब पाकिस्तान वास्तव में चिन्ता कर रहा है आखिर क्या पाकिस्तानी हुक्मरानों को याद आ ही गई कि उनके गुर्गों  में कसाव अभी जिन्दा है,  टी० वी ० से लेकर समाचार पत्र मंत्री से लेकर सन्तरी  तक सब  चिन्तित आखिर कब तक होगा यहाँ सब  कब तक ..................................................   
                      क्या होगा पुतला जलाने भर से
          पिछले साल होली के अवसर पर देश  की आथिर्क राजधानी मुम्बई के हमले के आरोपी कसाव का पुतला जलाया गया॔ हिन्दी के टेलिविजन चैनलों पर यह खबर ऎसे परोसी गई माना कि अब कसाव या उस जैसे सारे आतंकवादियों को खत्म कर दिया गया हो और कसाव नामक यह अंतिम आतंकवादी था उसको भी आज खत्म कर दिया गया है । इसके साथ ही यह भी कहा गया कि मुम्बई के आतंकवाद विरोध का यह अपना तरीका है । कसाव का पुतला बम्बई में जलाया गया, आलेख के प्रकाशित  होने तक देश के अन्य कोनों से भी ऎसी घटना खबर आ जाए, परन्तु कसाव के पुतले या किसी भी पुतले के दहन से वास्तव में कुछ भी बदलता है । हमारा यह निरीह आक्रोश  ही तो है जब आम आदमी अपने गुस्से का इजहार किसी और शक्ल में नहीं कर पाता तो ऎसे तरीकों से अपने को अभिव्यक्त करता है अगर इसमें इसी प्रकार का आक्रोश  ही हो तो भी हमारा काम क्या इतने भर से सम्पन्न हो जाने वाला है ।
                    भारतीय राजनैतिक परिदृय में पुतला जलाना एक राजनैतिक क्रियाकर्म  सा हो गया है । यह सब कई बार अपना आक्रोश  अभिव्यक्त करने के लिए होता है परन्तु अब तो कई बार यह सब इसलिए भी होता है ताकि उस व्यक्ति या संगठन को इस बहाने अपना प्रचार करने का आसान तरीका मिल जाता है । यह तरीका अब केवल राजनीतिक दलों तक ही नहीं है अपितु कई कथित सामाजिक संगठन, जातीय, धार्मिक विद्यार्थी  संगठन भी इसी तरह का प्रचार का टोटका अपनाने में लगे हैं ।
                  जो भी हो, कसाव जैसे आतंकवादियों के प्रति अपने गुस्से का इजहार करने का एक तरीका जनसामान्य ने अपनाया यह घटना अपने आप में एक संकेत तो देती ही है कि हम किस प्रकार आतंक से पीडि़त हैं और पुतला जलाकर सांकेतिक तौर पर ही सही अपने गुस्से की अभिव्यक्ति कर रहे हैं । पर सवाल यह भी है कि हमारे देश  में सत्ता पर काबिज लोग भी क्या जनमानस की इस व्यथा से परिचित हैं, क्या विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में इन घटनाओं का कोई असर होता है । अगर वास्तव में होता है तो क्या तब भी यह संभव है कि संसद में हमले के आरोपी को सजा की घोषणा हो जाने के बाद भी पत्रवली इतने लम्बे समय से किस कारण अब तक देश  के सवोर्च्च पदधारी के पास पड़ी हुई है । क्या संकेत हैं इस सबके कि हो सकता है एक दिन सिद्ध हो जाएगा कि कसाव देश  की सुरक्षा में सैंध लगाकर तीन दिन तक पूरे विव में भारत की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की पोलपट`टी खोलने बाले दल का सदस्य था ।
            जनधन की हानि के अलावा देश  पर आक्रमण करने वाले आतंकियों के दल के एक सदस्य और अब तक पकडे़ जा सके एकमात्र् जीवित आतंकी के प्रति हमारी सरकार का आज क्या रवैया है, उसके प्रति देश  के कानून में क्या कोई नरमी बरतने के पैंच मौजूद हैं, नही तो इस आतंकी के कबूलनामे को विवविरादरी के सम्मुख रखकर उसको अकल्पनीय सजा देकर इस दिशा   में कदम बढ़ाने की ओर कोशिश  करने वाले भीतरी तथा बाहरी आतंकियों के लिए सबक देने का हमारा प्रयास और तेज तथा कारगर नहीं होना चाहिए । पाकिस्तान के हुक्मरान, सेना तथा वहॉं के आतंकीयों की मिली जुली कोशश की स्वीकृति चाहे मुशरर्फ भारत में आकर कर गए हैं यही नहीं पूर्व प्रधान मंत्री  बेनजीर भुट`टो अपनी आत्मकथा में मेरी आपबीती में इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी हैं कि उनकी सेना के सेनाध्यक्ष स्तर के लोग कमीर में एक साथ एक लाख तक आतंकियों को भेजकर हमले की तैयारी में रहे हैं और अब जबकि खुले और साफ सबूत हमारे पास हैं फिर कार्यवाही में देरी का मतलब ही क्या है । अब तो हालात यह कि कसाव तथा उस जैसे अन्य आतंकवादियों की सुरक्षा, देखरेख तथा उसको जीवित रचाने की व्यवस्था में जितना धन, सुरक्षा ऎजेंसियों का जितना समय तथा जेलों में विशेष  सुरक्षा बैंरको तथा उनकी कोटर् में पेशी आदि पर जितना खर्च  हो रहा है संभवतः वह खर्च  देश  के किसी बड़े राज्य की सरकार के द्वारा कुल व्यय से भी अधिक होगा । अबू सलेम, बबलू श्रीवास्तव जैसे लोग जेल से ही चुनाव लड़ने का ऎलान करते हैं तो कई संगीन मामलों में आरोपित तथा निचली अदालतों से सजा पाए अपराधी बड़ी अदालतों में मुकदमें लड़ते हुए मंत्री  पद पर तक काबिज हैं । ऎसे में लोकतंत्र् का संदेश  ही क्या है ।  
               कसाब के पुतले के दहन से अब काम चलने वाला है नहीं क्योंकि  इतने वर्षों  से परंपरा के पालन के नाम पर हो रहे दिखावे के कारण कितने ही बड़े अपराधी आराम से घूम रहे हैं और वे कानून की धज्जियॉं उड़ाने के बाद देश  के लिए कानून बनाने वाली विधायिका के हिस्से बन रहे हैं फिर देश  की सवोर्च्च जन  पंचायत संसद  में भदेश   दृश्य  मंचित हो रहे हैं । हमारी कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के हिस्से से भी ऎसे मामलों में कोई तेजी नहीं आ रही है जिससे आम आदमी को लगे कि वह वास्वव में लोकतांत्र्कि गणराज्य का हिस्सा है । 
                हिंसा का जो नंगा रूप मुम्बई में २६/११ को हुआ उसके बाद में किस तरह के सबूत की आवयकता है, परन्तु हम देश  के कानून के लचीले स्वरूप में कब परिवतर्न लाऎंगे जिससे ऎसे मामलों में या इस जैसे मामलों में देश  की जनता को लगे कि न्याय हो रहा है । न्याय होना और न्याय होते दिखाई देना दोनों ही ऎसे मामलों में जरूरी है । अब पता चलता है कि राजीव गॉंधी की हत्या के मामले में सजा पाए, संसद काण्ड में सजा पाए आतंकियों को भी अभी सजा मिली नहीं है तो आम आदमी किस दिन तक इंतजार करे ऎसे में होलिका के साथ कसाव का पुतला जलाकर ही सही उसने अपने गुस्से का इजहार भी कर दिया तथा अपनी ओर से उसकी सजा भी बता दी, परन्तु वास्तव में कसाव या उस जैसे अन्य आतंकवादियों सजा मिलेगी भी कि नहीं और वह मिलेगी भी तो कब यह भविष्य  के गर्त  में बंद है । लेकिन एक बात साफ है कि अब आम आदमी राजनीतिक दलों की इस तरह की पैंतरेबाजी से उब चुका है कि वे आतंकवाद के विरोध में हैं परन्तु उसे सख्ती से कुचलने के प्रति कानून बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है ।            राजनीतिक दल शोर  तो काफी करते हैं कि अपराधियों को राजनीति में प्रवेश  न हो परन्तु हर दल के अपने अपराधियों के लिए अलग मानदण्ड हैं और दूसरे दले के अपराधियों के लिए अलग मानदण्ड हैं। यही नहीं कल तक अपराधी विरोधी दल में था तो अपराधी था और अपने दल में आते ही वह महात्मा घोषित जाता है । संगीनों के साए में, अपराधियों के साथ सरेआम घूम  रहे तथा भ्रटाचार के आरोपों से घिरे लोग हमारे तंत्र् में लोकनायक होने तथा न्याय, अंिहंसा तथा ईमानदारी का पाठ पढ़ने का उपदेश दे रहे हैं लोकतंत्र् का इससे भद`दा मजाक और क्या हो सकता है । ऎसे में लोकतंत्र् में ताकतवर अपराधियों से धिरे जनसमूह को आतंकवादियों के या किसी अन्य अपराधी का पुतला जलाने मात्र् से क्या होगा । हिन्दी फिल्मों में भी ऎसा कई बार होता है जब हमारे अभिनेता अकेले होने के बावजूद कई कई खलनायकों को मार देते हैं हम सिनेमा घरों  तथा टेलिविजन पर यह देखते हैं और आनंदित होते हैं, परन्तु वास्तविक दुनिया में आते ही फिर हम वही देख रहे हैं जो देखना भी नहीं चाहते । 
                हमारे लोकतंत्र् की इस असलियत को हम शायद  अभी स्वीकार नहीं कर पा रहे है कि अब अपराधी तथा आतंकवादी वोट बैंक को प्रभावित करने तथा कराने वाले असरकारी तत्व है जो अब हमारे राजनीतिक दलों के लिए प्रभावकारी ताकत बनते जा रहे हैं ऎसे में यही सोचना है कि आखिर हमारे राजनीतिक आकाओं को कब यह पैगाम मिलेगा कि जनता कसाव का पुतला जलाकर यही सन्देश देना चाहती है कि वे अपराधियों तथा आतंकवादियों को वोट बैंक को प्रभावित करने वाली ताकत के रूप में देखना बंद करें ।
प्रो नवीन चन्द्र लोहनी

5 comments:

  1. विचारणीय प्रश्न!

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  2. अपना आक्रोश जताने के लिए जनता के पास पुतला जलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. राजनीतिक दलों को भी अपनी राजनीति बंद, आगजनी और तोड़ फोड़ के बदले केवल पुतला दहन तक सीमित कर देनी चाहिए.

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  3. सही कह रहे हैं आप पर हो भी क्या सकता है !!
    हम विवश है कांग्रेस की विदेशी महारानी का नग्न नृत्य देखने को.

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